नूतन : जैसे कोई अपना
नूतन समर्थ बहल
'छोटा भाई' फ़िल्म की मातृवत भाभी, 'मिलन', 'खानदान' और 'मेहरबान' की आदर्श, स्नेहिल और समर्पित पत्नी, 'बंदिनी' की विरहिन और चोटिल युवती, 'जी चाहता है' की चुलबुली और शरारती नायिका।
अन्य फिल्में भी देखीं- 'लाट साहब', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'साजन बिना सुहागिन' ...लेकिन मेरे स्वभाव ने उन्हें स्वीकृत नहीं किया।
मैं जब तेरह-चौदह का रहा होऊंगा तब उन्हें पहली बार 'छोटा भाई' में देखा था। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित इस फ़िल्म में वे एक बिन मां बाप के तेरह चौदह साल के बच्चे के भाई की पत्नी हैं। सामाजिक तौर पर सौतेली भाभी। लेकिन वे उस सौतेले बाल देवर को अपने दो बेटों के बावजूद वैसा ही अविभाजित और अनांशिक प्रेम करती हैं। देवर उन्हें इस गहराई से भाभी कहता है, मानो मां कह रहा हो। प्रेमचंद के सधे हुए हाथों से इस कहानी में बड़े ही भावुक, मार्मिक और कड़वे यथार्थ के घटनाक्रम बुने गए हैं, जो तेरह चौदह साल के दर्शक बच्चे को रुला सकने में समर्थ हैं। फिर पितृ-हीन बच्चा जो असमर्थ विधवा मां, पक्षपात और उपेक्षा करनेवाली भाभियाँ, दुर्भाव पूर्ण बर्ताव करनेवाले भाइयों के बीच रहकर दुखी रहने और और अकेलापन महसूस करने वाला 'मैं' नूतन जैसी ममतामयी सकारात्मक भाभी से क्यों न प्रभावित होता? मेरी अपनी ममतामयी मां के अतिरिक्त नूतन मुझे वांछित भाभी के रूप में आत्मसात हो गयी।
'छोटा भाई' में नूतन समर्थ के अलावा बालक महेश कोठारी, रहमान, ललिता पवार जैसे कला-सिद्ध अभिनेताओं से अनुकूल और प्रभावशाली अभिनय करा लेने वाले निर्देशक भी प्रणम्य हैं।
नूतन मेरी सम्माननीय दूरस्थ स्वजन की तरह हो गईं जो अगर संभव होता तो अपनी मां के बाद उतना ही प्यार देतीं 'जितने की भूख' मेरी अपनी भाभियाँ पूरी नहीं कर पाईं। नूतन की छबि ऐसी बन गयी मन में कि मैं हमेशा उनके अभिनय में वही ढूंढता रहा। बाद में वयस्क हुआ तो पता चला जीवन, कहानी और फिल्मी चरित्र में वास्तविकता का अंतर है। प्रेमचंद जैसा समर्थ कहानीकार भले ही अपने चरित्रों से वांछित आदर्शों का पालन करवा ले, यथार्थ तो चलता अपनी ही टेढ़ी चाल है।
आज संवेदनशील अभिनेत्री 'नूतन समर्थ' के कैशोर्य की तस्वीर देखी, उनकी बिंदास बहन तनुजा के साथ तो लगा किसी अपने की फ़ोटो देख रहा हूँ।
मैंने हमेशा महसूस किया कि उनकी आंखों में एक अव्यक्त सा दर्द हमेशा बना रहता था, मेरी आँखों की तरह।
सोच रहा हूँ - 'क्या चेहरों यानी शक्लों की तरह आंखें भी दुनिया में अपने बारह जुड़वा रखती हैं? बारह हमशक्ल की तर्ज़ पर बारह हमचश्म ....'
आपका मेहबूब ....
~ हबीब अनवर
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