'नया दौर' और 'ताजमहल'
'नया दौर' और 'ताजमहल'
दुनिया के ख़ूबसूरत स्मारकों में भारत के आगरा में स्थित ताजमहल भी है। मुग़लों के शासनकाल में, हिंदुस्तान की रियाया से प्राप्त धन से, इस भव्य संगेमरमर की इमारत का निर्माण हुआ था। इसे कुछ प्रेम का प्रतीक मानते हैं तो कुछ केवल एक मकबरा। लेकिन इसकी भव्यता और सुंदरता अद्वितीय है। भारतीय जनता के श्रम से, पसीने से और धन से निर्मित यह स्मारक सौ प्रतिशत भारतीय है। मुग़ल बादशाह के बनवा लेने से यह अरब या अफ़गानी नहीं हो जाता। इस पर भारत के अतिरिक्त कोई दूसरा अपना अधिकार नहीं जता सकता। हज़ारों लाखों देशी विदेशी पर्यटक इसे देखने आते हैं, उसका राजस्व भारत सरकार को जाता है, जनता को जाता है। इसका गर्व, इसकी ख़ुशी प्रत्येक नागरिक को होनी चाहिये। इसकी सुंदरता का दायित्व, रक्षा भारतीय जनगण का कर्तव्य है। यह भारत की धरोहर है, संपदा है। इसे और तमाम भव्य इमारतों को भारतीय सम्पदा, अस्मिता के रूप में आत्मसात करना चाहिये। धर्म और जातीयता का भेद भारत की संप्रभुता पर ख़तरा है। इसे नागरिक और प्रशासकों दोनों को समझना चाहिये। सद्भाव, बंधुत्व और सकारात्मक उदार दृष्टिकोण से ही भारत के विघटन को रोका जा सकता है।
ख़ैर, ताजमहल की विश्वलोकप्रियता को देखकर इस पर कवियों और कथाकारों ने सुंदर काम किया है। इस नाम से फिल्में भी बनी हैं, जिन्हें दर्शकों ने बहुत प्यार दिया है। जो फिल्में इस नाम से नहीं भी बनी, उनके विषय कुछ और रहे हों, उनमें भी ताजमहल की पृष्ठभूमि पर गाने फिल्माए गए हैं।
ऐसी ही एक फ़िल्म है नया दौर (1964)। पूंजीपति और मजदूरों के आपसी संघर्ष पर आधारित इस फ़िल्म में एक स्वप्निल गीत शामिल किया गया है, जिसमें ताज की खूबसूरती, उसके महत्व, उसके मूल्यवान होने पर कवि शकील बदायूंनी ने बहुत ख़ुलूस के साथ एक गीत लिखा है। इस गीत ने लोकप्रियता की सभी सीमाएं पार कर लीं। इसका संगीत नौशाद साहब ने बनाया, इसे गाया रफ़ी साहब और सम्माननीय लता जी ने। यह दिलीपकुमार (यूसुफ़ खान) और वैजयंती माला बाली पर फिल्माया गया है। इस गीत को सुनने से जितना सुख मिलता है, पढ़ने से उतनी गहराइयाँ भी दिखाई देती हैं। यह गीत नहीं है, ताजमहल की विशेषता गिनवाती परिभाषा है..
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सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है।
इसके साये में सदा प्यार के चर्चे होंगे
ख़त्म जो हो ना सकेगी वो कहानी दी है।
एक शहंशाह ने ....
ख़त्म....कहानी : शाश्वत कथा
ताज वो शम्मा है उल्फ़त के सनम-ख़ाने की
जिसके परवानों में मुफ़लिस भी हैं ज़रदार भी है
संग-ए-मरमर में समाए हुए ख़्वाबों की क़सम
मरहले प्यार के आसान भी, दुश्वार भी है
दिल को एक जोश इरादों को जवानी दी है
एक शहंशाह ने ...
मरहले= लक्ष्यमार्ग, रास्ते, पड़ाव, मोड़।दुश्वार=कठिन।
ताज इक ज़िंदा तसव्वुर है किसी शायर का
इसका अफ़साना हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं
इसके आगोश में आकर ये गुमाँ होता है
ज़िन्दगी जैसे मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
ताज ने प्यार की मौजों को रवानी दी है
एक शहंशाह ने ....
तसव्वुर=कल्पना, सपना। अफ़साना=कहानी।गुमाँ=अनुभव, आभास। आगोश=पास, गोद, निकट।
ये हसीं रात ये महकी हुई पुरनूर फ़ज़ा
हो इजाज़त तो ये दिल इश्क़ का इज़हार करे
इश्क़ इंसान को इंसान बना देता है
किसकी हिम्मत है मुहब्बत से जो इनकार करे
आज तक़दीर ने ये रात सुहानी दी है
एक शहंशाह ने ...
पुरनूर फ़ज़ा=प्रकाश में डूबा वातावरण, पूर्णिमा।
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फ़िल्म : लीडर (1964)।संगीत : नौशाद अली।
गीत : शकील बदायुनी।गायक : मो.रफ़ी,लता मंगेशकर। अभिनय: दिलीप, लता।
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