आशावाद : काहे को रोये?
आशावादी गीत : कहे को रोये?
बनेगी आशा इक दिन तेरी ये निराशा
काहे को रोये, चाहे जो होये?
सफ़ल होगी तेरी आराधना...काहे को रोये …
समा जाये इस में तूफ़ान। जिया तेरा सागर समान।।
आँखे तेरी काहे नादान। छलक गयी गागर समान।।
जाने क्यों तूने यूँ, अँसुवन से नैन भिगोये.काहे को.
कहीं पे है सुख की छाया। कहीं पे है दु:खों की धूप।।
बुरा भला जैसा भी है। यही तो है बगिया का रूप।।
फूलों से,कांटों से, माली ने हार पिरोये.काहे को..
दिया टूटे तो है माटी। जले तो ये ज्योती बने।।
आँसू बहे तो है पानी। रुके तो ये मोती बने।।
ये मोती आँखों की,पूँजी है ये न खोये.काहे को..
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संगीत : संगीत-शिरोमणि सचिन देव बर्मन.
गीतकार : संतकवि आनंद बक्शी.
गायक : तान-पुत्र सचिन देव बर्मन.
प्रसंग : श्रीमदाराधना महादृष्य-काव्य.
संकृतैश : महाप्रभु शक्ति सामंत.
@ प्रस्तोता : निराखर अपढ़ विद्यार्थी
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