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Showing posts from October, 2023

कांटों से खींच के ये आँचल

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कांटों से खींच के ये आँचल  गीत, संगीत और दृश्य-काव्य यानी फिल्मों का असर सचेतन से होता हुआ अचेतन में पैठता है। बचपन का अचेतन मन बड़ा ही कोमल होता है। उस पर पड़ी लकीरें जीवन भर नहीं मिटती।  वहीदा रहमान (रेखी,सिंह) को दादा साहब फाल्के का सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल रहा है। दादा साहब फाल्के को हमने देखा भी नहीं है और जन भी नहीं है। पढ़ पढ़ कर पता चलता है कि भारतीय सिनेमा के वे जनक थे। होश में आते ही जिन भारतीय सिनेमा की चलती-फिरती, हँसती-गाती, झूमती-नाचती मूर्तियों को जब यह पुरस्कार मिलता है, तो हमारी चेतना चिहुंक उठती है- 'अच्छा'।  सामान्य लोग जिसे प्यार करें और लोक-प्रिय बनाएं उसे जब विशिष्ट लोग पुरस्कृत करते हैं, तब लगता है कि अच्छा, तो हमारी पसंद इतनी अच्छी थी। कभी कभी नाम भी तभी पता चलता है जब उसको कोई पुरस्कार मिलता है। तब तक दिमाग में चित्र और चरित्र ही घूमते रहता है।  पद्मश्री पद्मभूषण के साथ साथ कई राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार पानेवाली अभिनेत्री वहीदा रहमान ने उस समय फिल्मोद्योग की ऊंचाइयां छू ली थी, जब हमने स्लेट पट्टी पर 'अआ इई' लिखना शुरू भी नहीं किया था। ज...

नूतन : जैसे कोई अपना

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 नूतन समर्थ बहल   समर्थ और स्वाभिमानी अभिनेत्री नूतन मेरी पसंद की उन अभिनेत्रियों में से एक हैं जिन्होंने अपने चरित्रों के माध्यम से प्रभाव डाला।               'छोटा भाई' फ़िल्म की मातृवत भाभी, 'मिलन', 'खानदान' और 'मेहरबान'  की आदर्श, स्नेहिल और समर्पित पत्नी, 'बंदिनी' की विरहिन और चोटिल युवती, 'जी चाहता है' की चुलबुली और शरारती नायिका।            अन्य फिल्में भी देखीं- 'लाट साहब', 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'साजन बिना सुहागिन' ...लेकिन मेरे स्वभाव ने उन्हें स्वीकृत नहीं किया।          मैं जब तेरह-चौदह का रहा होऊंगा तब उन्हें पहली बार 'छोटा भाई' में देखा था। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर आधारित इस फ़िल्म में वे एक बिन मां बाप के तेरह चौदह साल के बच्चे के भाई की पत्नी हैं। सामाजिक तौर पर सौतेली भाभी। लेकिन वे उस सौतेले बाल देवर को अपने दो बेटों के बावजूद वैसा ही अविभाजित और अनांशिक प्रेम करती हैं। देवर उन्हें इस गहराई से भाभी कहता है, मानो मां कह रहा हो। प्रेमचंद के सधे हुए हाथों से इस...