कांटों से खींच के ये आँचल

कांटों से खींच के ये आँचल गीत, संगीत और दृश्य-काव्य यानी फिल्मों का असर सचेतन से होता हुआ अचेतन में पैठता है। बचपन का अचेतन मन बड़ा ही कोमल होता है। उस पर पड़ी लकीरें जीवन भर नहीं मिटती। वहीदा रहमान (रेखी,सिंह) को दादा साहब फाल्के का सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल रहा है। दादा साहब फाल्के को हमने देखा भी नहीं है और जन भी नहीं है। पढ़ पढ़ कर पता चलता है कि भारतीय सिनेमा के वे जनक थे। होश में आते ही जिन भारतीय सिनेमा की चलती-फिरती, हँसती-गाती, झूमती-नाचती मूर्तियों को जब यह पुरस्कार मिलता है, तो हमारी चेतना चिहुंक उठती है- 'अच्छा'। सामान्य लोग जिसे प्यार करें और लोक-प्रिय बनाएं उसे जब विशिष्ट लोग पुरस्कृत करते हैं, तब लगता है कि अच्छा, तो हमारी पसंद इतनी अच्छी थी। कभी कभी नाम भी तभी पता चलता है जब उसको कोई पुरस्कार मिलता है। तब तक दिमाग में चित्र और चरित्र ही घूमते रहता है। पद्मश्री पद्मभूषण के साथ साथ कई राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार पानेवाली अभिनेत्री वहीदा रहमान ने उस समय फिल्मोद्योग की ऊंचाइयां छू ली थी, जब हमने स्लेट पट्टी पर 'अआ इई' लिखना शुरू भी नहीं किया था। ज...