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Showing posts from January, 2024

गीतकार शैलेंद्र : अंतरंग की आवाज़

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 गीतकार शैलेंद्र : अंतरंग की आवाज़ मनोरंजन की दुनिया को कलात्मक, रंगीन, सार्थक, गहरी, आकर्षक, भावुक और मानवीय बनानेवाले निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राजकपूर के समूह के रसीले, सरल, सुबोध, अंतरंगी गीतकार शैलेंद्र ने जन जन के मन की बात बड़ी सहजता के साथ अपने गीतों में पिरोकर दुनिया के सामने रख दिया। अपना दिल भी खोला और दुनिया का भी। राजकपूर की लोकप्रियता में गीतकार शैलेंद्र और गायक मुकेश का बहुत योगदान था।  एक ज़माना था जब प्रगतिशील गीतकारों, शायरों और कलाकारों से फिल्मिस्तान जगमगा रहा था। भारतीय जन नाट्य संघ और प्रगतिशील लेखक संघ के गीतकार, शायर, अभिनेता जैसे कैफ़ी आज़मी, साहिर, फैज़, शैलेंद्र, बलराज साहनी, अवतार कृष्ण हंगल, उत्पल दत्त, आदि कलाकार सम्मान के साथ काम कर रहे थे। इनमें शैलेंद्र के गीतों ने साधारण जनों की आवाज़ को शब्द दिए। ग्रामीण परिवेश उनके गीतों में साकार हो उठता था। समकालीन राजनीति, सामाजिक समस्याओं, आर्थिक संघर्ष उनके गीतों में सरलता से स्थान पा जाता था। सामाजिक लोगों की व्यक्तिगत व्यथा, निराशा, दुःख और सुख को उनकी कलम ख़ूबसूरती से अभिव्यक्ति देती थी। प्रलेस औ...

आशावाद : काहे को रोये?

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आशावादी गीत : कहे को रोये? बनेगी आशा इक दिन तेरी ये निराशा काहे को रोये, चाहे जो होये? सफ़ल होगी तेरी आराधना...काहे को रोये … समा जाये इस में तूफ़ान। जिया तेरा सागर समान।। आँखे तेरी काहे नादान। छलक गयी गागर समान।। जाने क्यों तूने यूँ, अँसुवन से नैन भिगोये.काहे को. कहीं पे है सुख की छाया। कहीं पे है दु:खों की धूप।। बुरा भला जैसा भी है। यही तो है बगिया का रूप।। फूलों से,कांटों से, माली ने हार पिरोये.काहे को..  दिया टूटे तो है माटी। जले तो ये ज्योती बने।। आँसू बहे तो है पानी। रुके तो ये मोती बने।। ये मोती आँखों की,पूँजी है ये न खोये.काहे को..  ० संगीत :  संगीत-शिरोमणि सचिन देव बर्मन. गीतकार : संतकवि आनंद बक्शी. गायक : तान-पुत्र सचिन देव बर्मन. प्रसंग : श्रीमदाराधना महादृष्य-काव्य. संकृतैश : महाप्रभु शक्ति सामंत. @ प्रस्तोता : निराखर अपढ़ विद्यार्थी